मल्टी-हॉस्पिटल मैनेजमेंट सिस्टम (HMS) - पूरी फीचर्स लिस्ट
इस फीचर्स लिस्ट को मुख्य मॉड्यूल्स में बाँटा गया है ताकि इसे आसानी से समझा जा सके।
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1. मास्टर डेटा और सेंट्रलाइज्ड मैनेजमेंट (Master Data & Centralized Management)
यह मल्टी-हॉस्पिटल सिस्टम की रीढ़ है।
· केंद्रीकृत डेटाबेस: सभी अस्पतालों का डेटा एक ही केंद्रीय सर्वर या क्लाउड पर स्टोर होता है, जिससे डेटा एक्सेस और विश्लेषण आसान हो जाता है।
· मल्टी-टेनेंसी आर्किटेक्चर: सिस्टम को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि एक ही सिस्टम अलग-अलग अस्पतालों के डेटा को अलग-अलग रखते हुए भी कॉर्पोरेट ऑफिस को सभी का consolidated व्यू दे सके।
· रोल-बेस्ड एक्सेस कंट्रोल (RBAC): अलग-अलग यूजर्स (जैसे डॉक्टर, नर्स, एडमिन, मैनेजमेंट) की भूमिका के आधार पर उन्हें अलग-अलग अस्पतालों और सिस्टम के हिस्सों तक पहुंच दी जाती है।
· केंद्रीय टैरिफ और मास्टर मैनेजमेंट: कॉर्पोरेट ऑफिस सभी अस्पतालों के लिए टैरिफ (दरों), टेस्ट्स, पैकेजेस, डॉक्टरों के शुल्क आदि को सेट और मैनेज कर सकता है। हर अस्पताल के लिए अलग-अलग दरें भी सेट की जा सकती हैं।
2. रोगी प्रबंधन (Patient Management - OPD & IPD)
· कम्प्रिहेंसिव पेशेंट प्रोफाइल: प्रत्येक मरीज की एक डिजिटल प्रोफाइल बनती है जिसमें उसका पूरा इतिहास, एलर्जी, पुरानी बीमारियाँ, सभी विजिट, रिपोर्ट्स आदि शामिल होते हैं। यह सभी अस्पतालों में एक जैसी रहती है।
· ऑनलाइन और ऑफलाइन अपॉइंटमेंट शेड्यूलिंग: मरीज वेबसाइट, ऐप, या फोन कॉल के जरिए अपॉइंटमेंट बुक कर सकते हैं। डॉक्टर अपनी उपलब्धता के अनुसार शेड्यूल सेट कर सकते हैं।
· क्यू मैनेजमेंट सिस्टम: OPD में मरीजों के वर्चुअल क्यू (लाइन) को मैनेज करना, वेटिंग टाइम कम करना।
· एडमिशन, डिस्चार्ज और ट्रांसफर (ADT): IPD में भर्ती करने, बेड शिफ्ट करने और डिस्चार्ज करने की सुविधा। ऑटोमेटेड डिस्चार्ज सारांश जनरेट होता है।
· बेड मैनेजमेंट: रियल-टाइम में सभी बेड्स की स्थिति (खाली, occupied, साफ़ हो रहा है) दिखाना। बेड अवेलेबिलिटी की रिपोर्टिंग।
3. चिकित्सा रिकॉर्ड (Medical Records)
· इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (EMR)/इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (EHR): डॉक्टर डिजिटल रूप में मरीज का क्लिनिकल नोट्स, डायग्नोसिस, प्रिस्क्रिप्शन, ट्रीटमेंट प्लान दर्ज कर सकते हैं।
· कंप्यूटराइज्ड फिजिशियन ऑर्डर एंट्री (CPOE): डॉक्टर सीधे सिस्टम में लैब टेस्ट, इमेजिंग, दवाइयों के ऑर्डर दे सकते हैं।
· डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन: डिजिटल रूप से पर्चे लिखना, जिससे हस्तलेखन की गलतियाँ कम होती हैं और दवा की दुकान से सीधा इंटीग्रेशन हो सकता है।
· टेम्प्लेट्स और क्लिनिकल नोट्स: विभिन्न विशेषताओं के लिए पहले से बने टेम्प्लेट्स का उपयोग करके नोट्स बनाना तेज़ और मानकीकृत हो जाता है।
4. नैदानिक प्रबंधन (Diagnostic Management - लैब और रेडियोलॉजी)
· लैब इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (LIMS): सैंपल कलेक्शन, ट्रैकिंग, टेस्टिंग, और रिपोर्टिंग को ऑटोमेट करता है।
· रेडियोलॉजी इंफॉर्मेशन सिस्टम (RIS): एक्स-रे, सीटी स्कैन, MRI आदि की बुकिंग, शेड्यूलिंग और रिपोर्ट मैनेजमेंट।
· डिजिटल इमेजिंग और कम्युनिकेशन (DICOM): मेडिकल इमेजेज को स्टोर, रिट्रीव और शेयर करना। डॉक्टर इन्हें कहीं से भी एक्सेस कर सकते हैं।
· ऑटोमेटेड रिपोर्ट जनरेशन: टेस्ट पूरा होते ही रिपोर्ट जनरेट हो जाती है और मरीज/डॉक्टर को ईमेल, एसएमएस या ऐप के जरिए भेजी जा सकती है।
· डायग्नोस्टिक इक्विपमेंट इंटीग्रेशन: लैब मशीनों से सीधे डेटा लेना ताकि मैनुअल एंट्री की गलतियाँ खत्म हों।
5. फार्मेसी और इन्वेंटरी प्रबंधन (Pharmacy & Inventory Management)
· सेंट्रलाइज्ड इन्वेंटरी मैनेजमेंट: सभी अस्पतालों के स्टॉक को केंद्रीय रूप से ट्रैक करना। लो-स्टॉक अलर्ट, एक्सपायरी अलर्ट।
· मल्टी-लोकेशन इन्वेंटरी: अलग-अलग वेयरहाउस और फार्मेसी के स्टॉक को मैनेज करना।
· ऑटोमेटेड इंडेंट और पर्चेज ऑर्डर: सिस्टम खुद ही सुझाव देता है कि किस चीज का ऑर्डर देना है।
· सीरियल/बैच नंबर ट्रैकिंग: दवाओं और supplies के बैच नंबर को ट्रैक करना, खासकर रिकॉल के समय।
· इंटीग्रेटेड फार्मेसी बिलिंग: डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन से सीधे फार्मेसी बिल बनना।
6. वित्तीय और बिलिंग प्रबंधन (Financial & Billing Management)
· यूनिफाइड बिलिंग सिस्टम: OPD, IPD, फार्मेसी, लैब आदि सभी के चार्जेस एक ही बिल में जुड़ते हैं।
· मल्टी-पेमेंट गेटवे इंटीग्रेशन: क्रेडिट/डेबिट कार्ड, UPI, नेट बैंकिंग, वॉलेट आदि के जरिए ऑनलाइन भुगतान।
· हेल्थ इंश्योरेंक इंटीग्रेशन (TPA): सिस्टम सीधे इंश्योरेंस कंपनियों से जुड़ा होता है। कैशलेस क्लेम सेटलमेंट, प्री-ऑथराइजेशन, eligibility चेक।
· पैकेज मैनेजमेंट: सर्जरी या ट्रीटमेंट पैकेजेस बनाना और उनकी बिलिंग करना।
· केंद्रीकृत एकाउंटिंग और जनरल लेजर: सभी अस्पतालों के फाइनेंशियल डेटा का केंद्रीयकरण। ऑटोमेटेड financial reports.
· कॉस्ट और प्रॉफिट सेंटर एनालिसिस: प्रत्येक अस्पताल, विभाग, या डॉक्टर की लाभप्रदता का विश्लेषण।
7. एमआरडी और रिपोर्टिंग (Medical Records Department & Analytics)
· केंद्रीकृत डेशबोर्ड और BI टूल्स: मैनेजमेंट के लिए रियल-टाइम डेशबोर्ड जहाँ KPI (Key Performance Indicators) दिखाई देते हैं, जैसे- occupancy rate, average length of stay, revenue, collection efficiency आदि।
· कस्टमाइजेबल रिपोर्ट्स: उम्र, बीमारी, डॉक्टर, विभाग आदि के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट्स जनरेट करना।
· स्टैटिस्टिकल एनालिटिक्स: मरीजों के डेटा का विश्लेषण करके रुझान (trends), रोग के पैटर्न, और आउटकम का अध्ययन करना।
8. अन्य महत्वपूर्ण फीचर्स (Other Important Features)
· मोबाइल ऐप और पेशेंट पोर्टल: मरीजों के लिए ऐप/पोर्टल जहाँ वे अपॉइंटमेंट बुक कर सकें, रिपोर्ट्स देख सकें, बिल pay कर सकें और डॉक्टर से ऑनलाइन सलाह ले सकें।
· डॉक्टर और स्टाफ पोर्टल: डॉक्टर घर बैठे अपने शेड्यूल, मरीजों के रिकॉर्ड और रिपोर्ट्स चेक कर सकते हैं।
· सिक्योरिटी और कंप्लायंस: डेटा का एन्क्रिप्शन, ऑडिट ट्रायल्स, और HIPAA/मेडिकल डेटा प्राइवेसी से संबंधित नियमों का पालन।
· मल्टी-लैंग्वेज और मल्टी-करेंसी सपोर्ट: अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने के लिए।
· एसएमएस और ईमेल अलर्ट्स: अपॉइंटमेंट रिमाइंडर, रिपोर्ट अवेलेबिलिटी, बिल भुगतान की सूचना आदि भेजना।
· एचआर और पेरोल मॉड्यूल: अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों के वेतन, अवकाश, attendance को मैनेज करना।
· एसेट मैनेजमेंट: मेडिकल उपकरणों और अन्य संपत्तियों का रखरखाव और ट्रैकिंग।